How They Succeeded : by Orison Swett Marden Hindi Summary with Ebook
------ About Book ------
कामयाबी तक पहुंचना कोई रातों-रात होने वाली बात नहीं होती. अपने मंज़िल के करीब पहुँचने से पहले आपको काफी पड़ाव और मुश्किलों से गुज़रना पड़ सकता हैं. और, अक्सर, ये मुश्किलें आपको आपकी लिमिट तक धकेल देती हैं. लेकिन, अगर आप कामयाब होना चाहते हैं, तो आपको किसी भी हालात में खुद को नहीं रोकना चाहिए. इस समरी में, आप एलेक्ज़ेंडर ग्राहम बेल, जॉन वानमेकर, जॉन डी. रॉकफ़ेलर , थॉमस एडिसन और एंड्रयू कार्नेगी की कामयाबी की कहानियों से इंस्पायर होंगे.
इस समरी से कौन सीख सकता हैं?
• एंट्रेप्रेन्योर
•एम्पलॉईस
•यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट
• जो अपनी ज़िंदगी में कामयाब होना चाहता हैं
ऑथर के बारे में
ऑरिसन स्वेट मार्डेन एक इंस्पिरेशनल राइटर थे जिन्होंने लाइफ में सक्सेस हासिल करने के बारे में लिखा है. वो 1897 में सक्सेस मैगज़ीन के फाउंडर थे. वे ख़ासतौर से उन वैल्यूस और प्रिंसिपल्स के बारे में लिखते थे जिससे एक कामयाब ज़िंदगी जी जा सकती है. उनकी पहली बुक-"पुशिंग टू द फ्रंट" 1894 में पब्लिश हुई थी जो फ़ौरन बेस्ट-सेलर बन गई थी. ऑरिसन की 50 से भी ज़्यादा किताबें पब्लिश हो चुकी हैं.
------ SUMMARY ------
How They Succeeded: Life Stories of Successful Men
इंट्रोडक्शन
क्या आप उन लोगों में से एक हैं जो कामयाब होने का सपना देखते हैं? आपमें कौन से ऐसे एट्टीट्यूड और वैल्यूज़ हैं जो आपको लगता हैं कि आपको कामयाब होने में हेल्प करेंगे?
क्या आपको कभी ऐसा लगा कि आप हार मानने के बहुत करीब हैं? वो कौन सी बात हैं जो आपको दोबारा खड़े होकर आगे बढ़ने के लिए इंस्पायर करता हैं?
इस दुनिया में हर कोई जो सपना देखता हैं, उसके लिए सक्सेस या कामयाबी पाना आसान काम नहीं हैं. इस सफर में, उन चैलेंजेस का सामना करना पड़ता हैं जो हमारे हिम्मत और काबिलियत को टेस्ट करते हैं. हमारा रास्ता रोकने वाले कई सारे अड़चनों को झेलना पड़ता हैं. लेकिन लाइफ में आने वाली इन चैलेंजेस के बावजूद, हमें हर सिचुएशन में सही रेस्पॉन्स और सही एक्शन लेने के लिए तैयार रहना चाहिए.
इसी तैयारी का एक हिस्सा हैं दुनिया भर के कामयाब लोगों के एक्सपीरियंस से सीखना. उनकी कामयाबी की कहानियों से, हमें अपनी लाइफ में अपने सपनों को हासिल करने की सीख मिलती हैं. इसके अलावा, वे हमें अपने सपनों पर भरोसा रखने की और अपनी कोशिश को जारी रखने के लिए इंस्पायर करते हैं.
इस समरी में, आप उन अलग-अलग लोगों की कहानियों को जानेंगे जो अपने फील्ड में कामयाब हुए हैं. उनकी कहानियों से, आप उन वैल्यूज़ और स्ट्रेटेजीस के बारे में सीखेंगे जिनका इन लोगों ने कामयाब होने के लिए इस्तेमाल किया हैं.
इसके अलावा, आप उन वजहों को भी समझेंगे जो इन जैसे कामयाब लोगों को आगे बढ़ते रहने में उनकी मदद करते हैं. मुश्किलों के बावजूद, उन्होंने आगे बढ़ते रहने का और अपने मंज़िल को पाने का इरादा किया.
एलेक्ज़ेंडर ग्राहम बेल
इस दुनिया में रहने वाले लोगों की कामयाबी और तरक्की को लेकर अपनी-अपनी सोच हैं. कुछ अमीर होने का ख्वाब देखते हैं और कुछ लोग इस दुनिया को कुछ लौटाने के बारे में सोचते हैं. कामयाबी की इन अलग-अलग डेफिनिशन के बावजूद, हम ये जानते हैं कि इन ख्वाबों को पूरा करने का हम सबका अपना एक तरीका हैं. हालांकि, जब लाइफ हमारे प्लान्स के मुताबिक नहीं चलती, और हम हारे हुए महसूस करने लगते हैं, तो हमें मालूम होना चाहिए कि कामयाबी पाने की तरफ हमें वापस कैसे मुड़ना हैं.
और, ऐसा तभी मुमकिन हैं जब हम हमारे अंदर उस एट्टीट्यूड को लाएंगे जिससे हम कामयाबी को जल्द हासिल कर सकें. हमें हमारे अंदर एक ज़िद पैदा करना हैं, फोकस लाना हैं और खुद को ऐसे माहौल में डुबाना हैं जो हमें मोटीवेट कर सकें. और, सबसे ज़रूरी बात, किसी भी तरह के नेगेटिव जजमेंट को अनसुना करने की काबिलयत लानी चाहिए. किसी भी तरीके की नेगेटिविटी हमें हमारे मंज़िल तक पहुँचने से रोक सकती हैं. बल्कि, हमें कोशिश ये करनी चाहिए कि हम दुनिया को अपनी कामयाबी की कहानी सुना सके, फिर चाहे लोगों को वो नामुमकिन ही क्यों न लगे.
एलेक्ज़ेंडर ग्राहम बेल भी एक ऐसे ही महान शख्स थे. एक वक्त था जब लोगों ने इनको पागल करार दिया था क्योंकि ये ऐसी बातों पर यकीन करते थे जो लोगों को नामुमकिन लगता था. लेकिन अब, एलेक्ज़ेंडर को दुनिया के सबसे कामयाब और महान इन्वेंटर्स में से एक माना जाता हैं.
वे एक ऐसी फैमिली में जन्मे और पले-बड़े थे जिनमें इन्वेंटर्स यानि आविष्कार करने वाले लोग थे. उनके पिताजी एक मशहूर टीचर और 'सिस्टम ऑफ़ इन्विसिबल स्पीच' के इन्वेंटर थे. जबकि उनके दादाजी को स्पीच प्रॉब्लम्स को हटाने के एक तरीके को इंवेंट करने के लिए जाना जाता था.
एलेक्जेंडर बेल एक टीचर बने जो सुन और बोल न सकने वाले स्टूडेंट्स को पढ़ाते थे. वे अमेरिका में बॉस्टन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भी बने. नौ सालों तक, उन्होंने अपना एक्स्ट्रा टाइम इलेक्ट्रिक करंट से साउंड निकालने की कोशिश में बिताया. सालों के अपने रिसर्च के बाद, उन्होंने पहला टेलीफोन बना लिया.
जब उनके इस इन्वेंशन को लोगों को दिखाया गया, तो कई लोगों ने इसे सिर्फ एक खिलौना कहा, न कि कुछ ऐसा जिससे लोगों और बिज़नस को फायदा पहुंचे. जब ज़्यादातर लोग उनके काम को क्रिटिसाइज़ कर रहे थे, तब लोगों के नेगेटिव जजमेंट को अनसुना कर एलेक्ज़ेंडर ने खुद पर भरोसा कायम रखा और अपने इन्वेंशन के पर्पस पर अपना फोकस रखा.
दिल की गहराई में, वो जानते थे कि उनका टेलीफोन लोगों और बिज़नस के लिए एक प्रैक्टिकल पर्पस लाएगा. इसलिए वो मज़बूती से खड़े रहें. उन्होंने कोशिश की कि लोगों के डाउट को न सुनें, बल्कि उन्होंने अपने काम को और भी बेहतर करने का फैसला लिया.
जैसे जैसे वक्त बीता, उनके टेलीफोन को लोगों ने एक वरदान बताना शुरू किया क्योंकि इसने दुनिया के लिए नए बिज़नस और इंडस्ट्रीस के रास्ते खोल दिए थे. उनके इन्वेंशन ने उन्हें और उनकी कंपनी को अमीर बना दिया था. यही नहीं, एलेक्ज़ेंडर को उनकी अचीवमेंट और सोसाइटी में उनके कंट्रीब्यूशन के लिए जापान के सम्राट ने अवार्ड भी दिया. एलेक्जेंडर ग्राहम बेल की कहानी बताती हैं कि कैसे कामयाबी तक पहुंचने के लिए हमें मज़बूती और फोकस के साथ अपने गोल के लिए काम करना होता हैं. अगर हम अपने सपनों के बारे में दूसरे लोगों के डाउट्स को सुनते रहे, तो हम जल्दी ही अपने रास्ते से भटक सकते हैं. तरक्की और कामयाबी के रास्ते में, हमें अपनी काबिलियत को इम्प्रूव करते रहना चाहिए और खुद पर भरोसा रखना चाहिए, भले ही यह दूसरों की नज़र में कितना भी नामुकिन काम क्यों न हो.
जॉन वानामेकर
अकेले ही सपने देखने वाले हम जैसे लोग अक्सर कामयाब लोगों की कहानियों की तलाश में रहते हैं, ताकि हम उनके उस नज़रिए के बारे में जान सकें जिसने उन्हें कामयाब बनाया. और फिर, हम उनके नज़रियों को अपने लाइफ में अप्लाई करने की कोशिश करते हैं और यह उम्मीद रखते हैं कि हम भी उनके ही तरह कामयाब बनेंगे. वैसे, उनका नज़रिया, उनका एट्टीट्यूड रखना हमारे लिए भी फायदेमंद हो सकता हैं, लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि लाइफ में कामयाब होने के लिए और भी ऐसी बातें हैं जिनका ख्याल रखना ज़रूरी हैं. और, वो हैं- तैयारी और खुद को लैस करना.
इसका मतलब हैं कि रास्ते में आने वाले चैलेंजेस को दूर हटाने के लिए ज़रूरी स्किल्स का होना. इसके लिए हमें खुद पर टाइम और मेहनत दोनों लगाना होगा, अपने नॉलेज को बढ़ाना होगा, और अपने एक्सपीरियंस से सीखना होगा. ऐसा करके, हम खुद को आने वाली किसी भी सिचुएशन के लिए तैयार कर सकते हैं और अपने गोल की तरफ तेज़ी से आगे बढ़ सकते हैं.
जॉन वानामेकर , अमेरिका के फिलाडेल्फिया में पैदा हुए एक कामयाब बिजनेसमैन थे. अपने पिताजी की तरह ही जॉन बचपन से ही बहुत मेहनती शख्स थे. बहुत कम उम्र से ही वो अपने पिताजी के ईंट-पत्थर के बिज़नस में हेल्प कर पैसा कमाते और बचाते भी थे.
जब जॉन चौदह साल के थे, तो उनके पिताजी गुज़र गए जिसने उनकी ज़िंदगी की दिशा ही बदल दी. उन्होंने ईंटों का बिज़नस छोड़ दिया और एक बुकस्टोर में एक डॉलर और पच्चीस सेंट हर महीने की सैलरी पर काम किया. उनका सारा पैसा उनकी माँ के लिए उनकी आखिरी दिन तक किताबें खरीदने में खर्च हुए.
जॉन के लिए सब कुछ खत्म हो गया और कुछ नहीं बचा. उनके पास जो बचा था, वो थी उनकी अच्छी आदत, साफ सोच और उनकी मेहनत. कुछ वक्त बाद, उन्होंने एक कपड़े की दुकान में ईमानदारी से काम किया. जॉन के काम करने के तरीकों से सभी उन्हें पसंद करने लगें. जब वो सामान बेचते थे, कस्टमर्स उनके काम को देखकर हैरान होते. वो हमेशा कस्टमर्स की हेल्प के लिए तैयार रहते और उनके ज़रूरतों का ध्यान रखते. इसके अलावा, वो बहुत ही एम्बिशस शख्स थे और कामयाब होना चाहते थे.
जल्दी ही, जॉन, यंग मेन्स क्रिश्चियन एसोसिएशन (Y.M.C.A) के ऐसे पहले सेक्रेट्री बन गए जिन्हें सैलरी भी दी जाने लगी. उन्होंने वहां सात साल तक काम किया. चौबीस साल की उम्र में, उन्होंने अपने जीजाजी के साथ मिलकर ओक हॉल कपड़ों का स्टोर खोला. बिज़नस करने की अपनी ख़ास काबिलियत की वजह से वो जिस किसी काम में हाथ डालते, वो कामयाब होता था.
जॉन हमेशा कस्टमर्स को हाई क्वालिटी सामान और हाई क्वालिटी सर्विस देने के लिए जाने जाते थे. अपने बेहतरीन मैनेजमेंट की वजह से, वो कपड़ों के बिज़नस को ऊंचाइयों तक ले गए. दस साल बाद, जॉन ने अपना खुद का बिज़नस शुरू करने का फैसला लिया और अपने शहर में एक बड़े बिजनेसमैन बन गए.
जब उनसे उनकी कामयाबी का राज़ पूछा गया, तो जॉन ने जवाब दिया कि लगातार बिना रुके कोशिश करने वाले ही कामयाब हो पाते हैं. उनकी कहानी में देखा जा सकता हैं कि कैसे उन्होंने हमेशा अपनी पूरी एनर्जी अपने काम में लगा दी. वो और ज़्यादा हासिल करने के लिए, खुद की लिमिट से ज़्यादा मेहनत करने से भी नहीं चूके.
इसके अलावा, जॉन वानमेकर ने यह भी कहा कि उन्हें ये लगता था कि उन्हें लगातार खुद में इन्वेस्ट करते रहना चाहिए. इसका मतलब हैं लगातार नॉलेज हासिल करना और अपने एक्सपीरियंस से सीखना. जॉन वानमेकर ने जो कुछ भी सीखा, उसे अपनी ज़िंदगी में उसे अप्लाई किया.
थॉमस ए. एडिसन
एक आदमी जो एक साथ कई सारे काम करता हैं, वो खुद को उस आदमी से कम्पेरिज़न नहीं कर सकता जिसने अपनी सारी कोशिश को अपने एक हुनर को निखारने में फोकस किया.
और, यही हैं महान थॉमस एडिसन का राज़. उनका जन्म एक कम इनकम वाली फैमिली में हुआ था, और वे सपना देखने वालों में से नहीं थे. उन्हें मैथ्स भी पसंद नहीं था. शुरू में, वो सिर्फ एक न्यूजबॉय थे, जो अपने काम से थोड़े से पैसे कमाकर ही खुश था. लेकिन, जब थॉमस को एहसास हुआ कि उन्हें क्या पसंद हैं और उनका गोल क्या हैं, तब फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. बल्कि, इसे हासिल करने में अपनी जी-जान लगा दी.
वो कई मुश्किलों से गुज़रे. उनके दादाजी न्यूयॉर्क के काफी जाने माने शख्स थे लेकिन वे फाइनेंशियली कमज़ोर थे. इसलिए, थॉमस की फैमिली मिशिगन आ गई. तब थॉमस सिर्फ सात साल के थे. हाल ऐसा था कि उन्हें बहुत कम उम्र में ही काम करने के लिए मजबूर होना पड़ा. आविष्कार, यानि इन्वेंशन, के लिए उनका प्यार पहली बार तब सामने आया जब उन्होंने उस ट्रेन में एक लैब बनाया, जहाँ वे काम करते थे. उन दिनों, थॉमस अपनी छोटी सी लैब में चीजों के साथ एक्सपेरिमेंट किया करते थे. अफ़सोस कि एक कम्प्लीकेशन की वजह से उन्हें कम सुनाई देने लगा था.
सुनने में प्रॉब्लम होने के बावजूद वे अपना काम करते रहे. एक बार उन्होंने डिपो के पास ट्रैक पर खेल रहे एक लड़के की जान भी बचाई. बदले में, उस बच्चे के पिताजी ने उन्हें टेलीग्राफी के बारे में सब कुछ सिखाया.
सीखने की उनमें जो चाहत थी, उसने उन्हें एक रेलरोड कंपनी में रेगुलर एम्प्लॉई बना दिया था और वे उनके सबसे एक्सपर्ट ऑपरेटरों में से एक बन गए. हालांकि, थॉमस ने इस दौरान भी इन्वेंशन से प्यार करना नहीं छोड़ा था. अपना हुनर दिखाते हुए, उन्होंने सड़क पर काम करने के दौरान अपने टेलीग्राफ इंस्ट्रूमेंट में ऑटोमैटिक अटैचमेंट, एक ऑटोमैटिक टेलीग्राफ रिकॉर्डर, और भी बहुत सारी चीज़ों का इन्वेंशन किया.
थॉमस एडिसन को अपने फील्ड में अचानक या रातों-रात पॉपुलैरिटी नहीं मिली थी. बल्कि, 1869 में एक इन्वेंशन के लिए उन्हें अपना पहला लाइसेंस मिला था. ये इन्वेंशन था वोट रिकॉर्ड करने की मशीन. अफसोस की बात हैं कि उस इन्वेंशन को लोगों ने यूज़ नहीं किया. उस वक्त उन्हें एहसास हुआ कि अब वे जो कुछ भी बनाएँगे, उसे प्रैक्टिकल होना चाहिए ताकि लोग उसका इस्तेमाल कर सकें. इसलिए, अपने हर इन्वेंशन में, हमेशा उन्होंने वही चीज़ बनाई जिस से लोगों को फायदा पहुंचे.
ये माना जाता हैं कि थॉमस एडिसन ने 600 से ज़्यादा इन्वेंशंस का पेटेंट कराया था. ये आविष्कार, ये इन्वेंशंस उनके सालों की कड़ी मेहनत का नतीजा हैं. अपने इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि वो दिन में कम से कम चौदह घंटे काम करते थे. वे अपना सारा पैसा उन स्टडी मटेरियल और रिसोर्सेस को खरीदने में खर्च करते जो उन्हें प्रॉब्लम को सुलझाने में मदद करते थे. अपने इन इन्वेंशंस से उन्होंने सोसाइटी को बेहतर बनाने में कंट्रीब्यूट किया. इससे उन्होंने काफी पैसे कमाए और अपने देश का नाम भी ऊँचा किया.
थॉमस एडिसन की सक्सेस की कहानी इसलिए बनी क्योकिं अपनी सारी एनर्जी, टाइम और कोशिश को उन्होंने उस काम में लगाया जिसमें उनको सबसे ज़्यादा इंटरेस्ट था. अपने जूनून, अपने पैशन पर फोकस रख कर और उसे प्रैक्टिकल तौर पर अप्लाई कर उन्होंने ऐसी चीजें बनाईं जिनकी लोगों को जरूरत थी.
जो लोग सपना देखते हैं और सक्सेस पाना चाहते हैं, उन्हें कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार रहना चाहिए. इसके अलावा, हमें यह भी मालूम करना चाहिए कि हम असल में चाहते क्या हैं और उसमें महारत हासिल करने पर अपना फोकस रखें. इस तरीके को अपनाने पर ही हम अपने सक्सेस के करीब पहुँच सकते हैं.
जॉन डी. रॉकफ़ेलर
इस दुनिया में हर आदमी कामयाबी पाने के लिए अलग-अलग तरीका अपनाता हैं. कामयाबी पाने का कोई भी शॉर्टकट नहीं हैं, लेकिन इसे हासिल करने के कई तरीके हैं. बस हमें ये जानना होगा कि चीजों को अलग-अलग एंगल से कैसे देखना हैं. ऐसा करने पर, हम नए नज़रिए हासिल कर सकते हैं जो हमारे लिए नए रास्ते और आइडियास खोलेंगे.
कामयाबी के रास्ते पर चलते हुए हमें खुद को याद दिलाते रहना चाहिए कि हमें अपने ही रास्ते पर चलना हैं. दूसरा जिस रास्ते चल रहा हैं वो हमारे लिए नहीं हैं. इसलिए हमें सिर्फ अपने तरीके और अपने कदमों पर भरोसा करना चाहिए. वक्त गुज़रने के साथ, सब कुछ अपने आप सही जगह पर आ ही जाएगा.
जॉन डी. रॉकफ़ेलर को अब तक का सबसे अमीर अमेरिकी माना जाता हैं. उनका जन्म 8 जुलाई, 1839 को अपने पिताजी के खेत में हुआ था. वे एक मिडिल-क्लास फैमिली से थे. उनके पेरेंट्स मेहनती थे और चर्च जाने वाले लोग में से थे.
चौदह साल की उम्र से जॉन अपनी फैमिली पर डिपेंड होकर नहीं रहना चाहते थे. इसलिए गर्मियों में, उन्होंने एक खेत पर काम करने का और कमाने का फैसला किया. उन्होंने अपनी जवानी के साल दिन भर काम करते हुए गुज़ारे.
जब वो सोलह साल के थे, जॉन एक ऑफिस बॉय की जॉब करने क्लीवलैंड, ओहायो गए. वहां उन्होंने अलग-अलग तरह के बिज़नस मॉडल्स के बारे में काफी कुछ सीखा. इसके अलावा, उन्होंने यह भी महसूस किया कि अगर उन्हें कई सारे चीज़ों को हासिल करना हैं, तो उन्हें बहुत ज़्यादा मेहनत करनी पड़ेगी.
जॉन ने अठारह साल की उम्र में स्कूल छोड़ दिया, और अपनी माँ और भाई के लिए पैसे कमाने का फैसला किया. ऐसा वहां कोई नहीं करता था. उन्हें बिलिंग क्लर्क का जॉब मिला, और बाद में, उन्होंने खुद का आटा मिल का बिज़नस शुरू किया. ये काम करते हुए जॉन एक किताब रखते थे जिसमें वे अपने खर्चों और सेविंग्स का हिसाब किताब रखते थे.
वे एक ऐसे शख्स थे जिन्हें पैसों की वैल्यू में भरोसा था. जॉन की सोच थी कि एक आदमी की ड्यूटी हैं हर तरह से पैसा कमाना, उसे बचाना और बांटना. इस तरह वो आदमी अपनी ज़रूरतों के हिसाब से ही चलता हैं, और सिर्फ वही चीजें खरीदता हैं जो वो खरीद सकता हैं और जिसकी उसे जरूरत हैं. उन्होंने चैरिटी और चर्च को भी पैसे डोनेट किए.
जॉन ने जो बातें सीखी, उसे अपने लाइफ में अप्लाई किया. और फिर, जॉन एक गोदाम के मालिक बन गए और एक पार्टनर के साथ बिज़नस करने लगे. 25 साल की उम्र पार करने से पहले, वो 10,000 डॉलर की सेविंग कर चुके थे.
शुरुवात से ही, जॉन ने हमेशा अपना रास्ता खुद बनाया, पैसे कमाने के नए आइडियास ढूंढे. उनकी अलग सोच के बारे में तब पता चलता हैं जब उन्होंने कच्चे तेल में अपना इंटरेस्ट दिखाया. जब और लोग तेल के लिए ज़मीन या कुआँ खरीदने की होड़ में भागते थे, तब जॉन ने इस बिज़नस के मौके को एक अलग एंगल से देखा और समझा कि इस तेल को रिफाइन करने की ज़रूरत हैं ताकि लोग इस तेल को सेफली यूज़ कर सकें.
ऑयल रिफाइनरी के बारे में जानने वाले एक साथी के साथ, जॉन ने एक रिफाइनरी की शुरुवात की. उनकी सर्विस की डिमांड इतनी ज़्यादा थी कि वे कम वक्त में एक और रिफाइनरी खोलने में कामयाब हुए. बाद में, जॉन की रिफाइनरी का स्टैंडर्ड ऑयल कंपनी में मर्जर हो गया, जहाँ उनका एनुअल इनकम लगभग 16,000,000 डॉलर हो गया था. ये कॉरपोरेशन इस मॉडर्न ज़माने का सबसे बड़ा और कामयाब बिज़नस कॉम्बिनेशन बन गया.
जॉन की कहानी से यह जाना जा सकता हैं कि कैसे वो हमेशा चीजों को अलग-अलग एंगल से देखते थे और नए आइडियास लेकर आते थे. उनका जजमेंट बहुत अच्छा था, और वो कोई भी कदम उठाने से पहले चीजों को नाप-तौल करना पसंद करते थे. बहुत कम उम्र से ही उनमें दृढ़ता थी जिससे वो अपने सोचे हुए रास्ते से बिलकुल भटकते नहीं थे.
Risks के बावजूद, जॉन रॉकफ़ेलर लगातार तरक्की और कामयाबी हासिल करते रहे. अपनी पर्सनल कामयाबी के साथ-साथ, उन्होंने दूसरों को हेल्प की और चैरिटीस में डोनेट किया जिससे उनके अचीवमेंट्स और भी ज़्यादा बढ़ गए. दरअसल, जॉन रॉकफ़ेलर सिर्फ पैसे कमाकर सबसे अमीर अमेरिकी नहीं बने, बल्कि सोसाइटी में अपना कंट्रीब्यूशन देकर, दिल से भी अमीर बने.
एंड्रयू कार्नेगी
चाहे कोई छोटा मौका मिले या बड़ा, दोनों ही हमें अपनी आखिरी लिमिट तक धकेल सकतें हैं, मगर सिर्फ तब जब हम ऐसा होने दें. एक इंडिविजुअल के तौर पर, हमारा काम हैं हमारे सपनों को पाने लिए काम करते जाना. यह हमारी रेस्पॉन्सिबिलिटी हैं कि हम अपनी बेहतरीन परफॉरमेंस दें और दूसरों की उम्मीदों पर खरा उतरें. खुद को और ज़्यादा का चैलेंज करते-करते, हमें अचानक एहसास हो जाएगा कि हम अपनी मंज़िल के करीब पहुँच रहे हैं.
इसके अलावा, हमें ये भी पता चलेगा कि हमारा एक बेहतर रूप, बेहतर version भी हैं. यह एक ऐसा version हैं जो वो शख्स कभी हासिल नहीं कर सकता जो बड़े सपने देखने से डरता हैं.
एंड्रयू कार्नेगी ने स्कॉटलैंड के डनफर्मलन शहर से अपनी ज़िंदगी की शुरुवात की. जब वो दस साल के थे, तो उन्होंने पिट्सबर्ग में काम करना शुरू कर दिया था. उन्होंने सबसे पहले एक कॉटन फैक्ट्री में एक बॉब्बीन बॉय का काम किया और फिर एक इंजनमैन के तौर पर काम किया. फिर, वो एक टेलीग्राफ कंपनी में मैसेंजर बॉय बन गए. अपनी उस उम्र में, एंड्रयू ने कभी स्कूल जाने का एक्सपीरियंस नहीं किया, लेकिन उन्होंने खुद को पढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत की.
जिस इलाके में वे रहते थे, वहां उनकी मुलाकात कर्नल एंडरसन से हुई, जो एक लाइब्रेरी चलाते थे. कर्नल हर सैटरडे को काम करने वाले लड़कों को किताबें उधार देते थे. एंड्रयू ने इस मौके का फायदा उठाया ताकि वे खुद को पढ़ा सकें.
कुछ वक्त बीतने के बाद, एंड्रयू को अपने चाचा से एलेघेनी शहर में एक मैसेंजर बॉय के तौर पर काम करने का ऑफर मिला. पहले तो उसके पिताजी ने मना किया लेकिन यह जानने के बाद कि उन्हें वहां दो डॉलर और पचास सेंट मिलेंगे, उनके पिताजी ने आखिर में उन्हें जाने दिया.
एक महीने से भी कम टाइम में, एंड्रयू ने अपने सुपरिन्टेन्डेन्ट से टेलीग्राफ ऑपरेट करना सिखाने के लिए कहा. वो जो कुछ भी सीखते, उसे अपने खाली वक्त में प्रैक्टिस करते थे. आखिर में, जब वो इसे अच्छी तरीके से सीख गए, तो उन्होंने एक ऑपरेटर के जॉब के लिए अप्लाई करने के मौके का इंतज़ार किया. फिर, उन्हें इस पोजीशन में प्रमोशन मिल ही गया.
प्रमोशन के कुछ टाइम बाद, उनके पिताजी गुज़र गए. उसके बाद फैमिली की ज़िम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई. एक ऑपरेटर के तौर पर, एंड्रयू को पच्चीस डॉलर हर महीने मिलते थे और थोड़ा एक्स्ट्रा डॉलर उन्हें न्यूज़पेपर में मैसेजेस कॉपी करने के भी मिलते थे. उनके जॉब से वो अपनी फैमिली चलाते थे.
बाद में, एक और मौका उनके हाथ आया जब वो पेंसिल्वेनिया रेलरोड कंपनी में एक ऑपरेटर बन गए. फिर, जब उन्होंने ये प्रूव किया कि टेलीग्राफ रेलवे सिक्योरिटी और उसकी सक्सेस में अपना कंट्रीब्यूशन दे सकता हैं, तो उन्हें एक सेक्रेटरी का प्रमोशन मिला. इसके फ़ौरन बाद, एंड्रयू कार्नेगी वेस्टर्न डिवीज़न के सुपरिंडेंडेंट बन गए.
उनसे जो भी उम्मीदें रखी गई थी, अपनी लगातार कोशिशों से उन्होंने उससे भी ज़्यादा हासिल किया. 1870 के शुरुआती सालों में, वे स्टील बिज़नस से जुड़े जिससे अमेरिका में स्टील इंडस्ट्रीस काफी फ़ैल गई. वो उन चीजों में इन्वेस्ट करना पसंद करते थे जो उन्हें बहुत बड़ा प्रॉफिट दे सकता था. 19th सेंचुरी के आखिर में, एंड्रयू कार्नेगी अमेरिका के सबसे अमीर लोगों में गिने जाने लगे थे.
इसके अलावा, वो अमेरिका और ब्रिटन में मशहूर समाज सेवक बन गए थे. पिट्सबर्ग शहर में उन्होंने एक ही छत के नीचे एक लाइब्रेरी, एक म्यूजियम, एक कॉन्सर्ट हॉल और एक पिक्चर गैलरी बनवाया. एंड्रयू कार्नेगी ने अमेरिका के बेहतरीन आर्ट भी खरीदे. उन्होंने ये सब बनवाया ताकि जो लोग पिछड़े हैं उन्हें भी सीखने का मौका मिले. कार्नेगी का मानना था कि उनके अच्छे काम से वे दूसरों की ज़िंदगी को आसान बना सकते हैं.
एक इंटरव्यू के दौरान, कार्नेगी ने कहा कि उनकी कामयाबी का राज़ हैं उनका भरोसा कि उनमें बहुत कुछ करने की और बहुत काम आ सकने की काबिलयत हैं. जब वो छोटी पोजीशन में काम करते थे, तो उनसे जो भी उम्मीदें की जाती थी, वो हमेशा उससे पार पाने की कोशिश में लगे रहते थे. उन्हें हमेशा कुछ न कुछ सीखना पसंद था, और यही उनकी कामयाबी का राज़ हैं और यही उन्हें आगे बढ़ने के लिए उनका हौसला बढ़ाता था.
अमीर होने के बारे में, उन्होंने कहा कि इसके पीछे का राज़ ये था कि उन्होंने जल्द ही पैसे बचाने शुरू किए और वे ऐसा लगातार करते गए. फिर, उन्होंने इन्वेस्ट करना सीखा और जल्द ही उन चीजों में इन्वेस्टर बन गए जो उन्हें प्रॉफिट देता था.
एंड्रयू कार्नेगी की तरह, हमारे पास भी अमीर और कामयाब बनने की काबिलियत हैं, अगर हम उनके वैल्यूस को अपनी ज़िन्दगी में अप्लाई करने की कोशिश करें. हमेशा अपने फील्ड में बेहतरीन बनने का गोल रखते हुए, हम अपने मंज़िल को अपने करीब ला सकते हैं. इसके लिए, हमें जो भी काम दिया जाए, उससे ज़्यादा काम करने की कोशिश करनी चाहिए. जब हम इसे एक आदत बना लेंगे, तो हमें जल्द ही एहसास होगा कि हम वो शख्स बनते जा रहे हैं जैसा हम बनना चाहते हैं.
कन्क्लूज़न
इस समरी में आप उन लोगों से मिले जो अपनी लाइफ में कामयाब हुए, ये हैं - एलेक्ज़ेंडर ग्राहम बेल, जॉन वानामेकर, थॉमस एडिसन, जॉन डी. रॉकफ़ेलर और एंड्रयू कार्नेगी. उनकी कहानियों से, आपने वो लेसन सीखा जिन्हें आप अपने खुद की कामयाबी के रास्ते को चुनने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं.
इन कामयाब लोगों ने अपने सपनों को हासिल करने में जो वैल्यूस अपनाए, आपने वो भी सीखा. ये वैल्यूस हैं - अपने कोशिश में डटे रहना, हार्ड-वर्क, खुद पर इन्वेस्ट करना, नॉलेज लेना, और भी बहुत कुछ. अगर आप इन वैल्यूस को अपने भी लाइफ में शामिल करेंगे, तो ये ज़रूर आपको अपने सपनों को हासिल करने के लिए तैयार करेंगे.
इन लोगों ने जिन पर्सनल चैलेंजेस का सामना किया, उसके बावजूद उन्होंने अपने लिमिट से ज़्यादा मेहनत की. उनकी कहानियों में आपने देखा कि कैसे उन्होंने इन चैलेंजेस के आगे हार मानने से इंकार कर दिया.
याद रखिए कि अगर आप वाकई में कामयाब होना चाहते हैं, तो आपको भी अपनी एक तय लिमिट नहीं रखनी हैं. आपको लिमिट से आगे बढ़कर कोशिश करनी होगी. आपकी सिचुएशन कैसी भी हो, इससे कोई फरक नहीं पड़ता. एंड्रू कार्नेगी की एक कहावत हैं जिसे आप हमेशा अपने साथ रख सकते हैं-
“Do your duty and a little more and the future will take care of itself.”
यानि, “ अपना ड्यूटी कीजिए और उस पर थोड़ी और कोशिश कीजिए, और आपका फ्यूचर खुद संभल जाएगा."
आपके हालात जैसे भी हों, आपको अपनी मंज़िल तक पहुंचने से कोई नहीं रोक सकता. बस हमेशा अपना बेस्ट करने की कोशिश कीजिए और कामयाबी आपके लिए रास्ता खुद खोल देगी.
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[Note : The E-book is in English]
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